Our Sansthan's

हमारे प्रमुख संस्थानशांतिकुंज(गायत्री तीर्थ)गायत्री साधकोंका गुरुद्वार!
गंगा की गोद, हिमालय की छाया में विनिर्मित गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज, हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूरी पर स्थित है, जो युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (1911-1990) एवं माता भगवती देवी शर्मा (1926-1994) की प्रचंड तप साधना की ऊर्जा से अनुप्राणित है। यह जागृत तीर्थ लाखों-करोड़ों गायत्री साधकों का गुरुद्वारा है।1971 में स्थापित शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनिटोरियम के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ शरीर, मन एवं अंतःकरण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति अनुदानों का लाभ उठाया जा सकता है।यहाँ गायत्री माता का भव्य देवालय, सप्तर्षियों की प्रतिमाओं की स्थापना के साथ एक भटके हुए देवता का मंदिर भी है। गायत्री साधक यहाँ के साधना प्रधान नियमित चलने वाले सत्रों में भाग लेकर नवीन प्रेरणाएँ तथा दिव्य प्राण ऊर्जा के अनुदान पाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायता पाते हैं। आश्रम की तीन विराट यज्ञशालाओं में नित्य नियमित रूप से हजारों साधक गायत्री यज्ञ संपन्न करते हैं। शांतिकुंज के भव्य जड़ी-बूटी उद्यान में 300 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ-सर्वोपयोगी वनौषधियाँ लगाई गई हैं। यहाँ के विशाल भोजनालय में प्रतिदिन प्रायः पाँच हचार से अधिक आगंतुक श्रद्धालु तथा अनुमति लेकर आए शिक्षार्थी बिना मूल्य भोजन प्रसाद पाते हैं। अध्यात्म के गूढ़ विवेचनों की सरल व्याख्या कर उन्हें जीवन में कैसे उतारा जाए, अपने चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में उत्कृष्टता लाकर व्यक्तित्व को कैसे प्रभावकारी बनाया जाए, इसका सतत प्रशिक्षण यहाँ के नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्रों में चलता है, जो यहाँ वर्षभर संपादित होते रहते हैं। ये सत्र 1 से 9, 11 से 19, 21 से 29 की तारीखों में प्रति माह चलते हैं।यहाँ से 'अखंड ज्योति' एवं 'युग निर्माण योजना' नामक हिंदी मासिक तथा ‘युग शक्ति गायत्री’ गुजराती, मराठी, उड़िया, बांग्ला, तमिल, अंग्रेजी एवं तेलुगू भाषाओं में तथा ‘प्रज्ञा अभियान’ पाक्षिक हिंदी व गुजराती में प्रकाशित होती हैं। लगभग एक हजार उच्च शिक्षित कार्यकर्ता शांतिकुंज में स्थायी रूप से सपरिवार निवास करते हैं। निर्वाह हेतु वे औसत भारतीय स्तर का भत्ता मात्र संस्था से लेते हैं!

पत्ता:
गायत्री तीर्थ-शांतिकुंज,
हरिद्वार - 249401
फोन नं. : +91-1334 260602
Email:www.awgp.org
www.diya.net
www.dsvv.org

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2. गायत्री तपोभूमि मथुरा...
यह संस्थान मथुरा-वृन्दावन मार्ग महर्षि दुर्वासा की तपःस्थली पर स्थापित किया गया है । इसे परम पूज्य गुरुदेव की चौबीस महापुरश चरणों की पूर्णाहुति पर की गयी स्थापना माना जा सकता है, जिसे विनिर्मित ही गायत्री परिवार रूपी संगठन के विस्तार के लिए किया गया था । इसकी स्थापना से पूर्व चौबीस सौ तीर्थों के जल व रज संगृहीत करके यहाँ उनका पूजन किया गया, एक छोटी किन्तु भव्य यज्ञशाला में अखण्ड अग्नि स्थापित की गयी तथा गायत्री महाशक्ति का मन्दिर विनिमत किया गया । समय-समय पर विभन्न प्रकार के वैदिक एवं पौराणिक यज्ञ इस स्थान पर संपन्न किए गये । समय-समय पर साधना एवं प्रशिक्षण सत्रों द्वारा धर्मत्रंत से लोकशिक्षण के अभियान को यहीं से गति दी गई ।

परम पूज्य गुरुदेव की जन-जन से मिलने, साधनाओं द्वारा मार्गदर्शन देने की कर्मभूमि गायत्री तपोभूमि रही है । यहाँ पर १०८ कुण्डी महायज्ञ (१९५३) में पहली बार पूज्यवर ने साधकों को मंत्र दीक्षा दी । व्यक्तिगत मार्गदर्शन द्वारा श्रेष्ठ नर रतनों का चयन कर गायत्री परिवार को विनिमत करने के कार्य का शुभारंभ यहीं से हुआ । सन ६०-६१ के हिमालय प्रवास से लौटकर पूज्य आचार्य श्री ने युग निर्माण विद्यालय के एक स्वावलम्बन प्रधान शिक्षा देने वाले तंत्र को आरंभ किया जो एवं अभी भी सफलता पूर्वक चल रहा है ।

परम पूज्य गुरुदेव की १९७१ की विदाई के बाद यहाँ कार्य-विस्तार के अनुरूप निर्माण हो गया है और कण-कण में उनकी प्राण चेतना का दर्शन किया जा सकता है । विराट प्रज्ञानगर, युग निर्माण विद्यालय, साहित्य की छपाई हेतु बड़ी-बड़ी आफसेट मशीनें तथा युग निर्माण साहित्य जो पूज्यवर ने जीवन भर लिखा, उसका वितरण-विस्तार तंत्र यहाँ पर देखा जा सकता है।

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 3. अखण्ड ज्योति संस्थान ,मथुरा
 यह वह महिमामय स्थल है, जिसे लगभग ३० वर्ष (४२ से ७१) तक परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी की जीवन साधना का सतत सान्निध्य प्राप्त हुआ । मासिक अखण्ड ज्योति का प्रकाशन आगरा से प्रारंभ हुआ और इस स्थान पर पहुँचकर पनपता चला गया । हाथ से बने कागज पर छोटे ट्रेडिल मशीन द्वारा यहीं पर अखण्ड ज्योति पत्रिका छापी जाती थी ।

यहीं से देव परिवार के गठन का शुभारंभ हुआ । व्यक्तिगत पत्रों द्वारा जन-जन के अंतस्तल को स्पर्श करते हुए एक महान स्थापना का बीजारोपड़ संभव हो सका । अगणित दुःखी, तनावग्रस्त व्यक्तियों ने नये प्राण-नई ऊर्जा पायी । परम वंदनीया माताजी के हाथों का भोजन-प्रसाद की याद आते ही आध्यात्मिक तृप्ति मिलती है । अब तो सब कुछ बदल गया । पूरी बिल्डिंग को खरीदकर नया आकार दे दिया गया है । बस पूज्यवर के लेखन और साधना वाले कक्षों को यथावत रखा गया है । इतने छोटे से स्थान में ही ३० वर्षों तक प्रचण्ड साधना चली । २४-२४ लाख के चौबीस महापुरश्चरणों का अधिकांश भाग यहीं पूरा हुआ । अखण्ड ज्योति एवं युग निर्माण योजना पत्रिकाओं का लेखन-संपादन यहीं से होता था । पत्राचार एवं परामर्श का क्रम कभी रुका नहीं । साधकों की संख्या बढ़ी । देखते-देखते विराट् गायत्री परिवार खड़ा हो गया ।

प्रातः 2 बजे उठकर दैनिक साधना के पश्चात लेखनी साधना में तन्मय हो जाना पूज्यवर का स्वभाव था । जब तक एक दिन की लेखन-सामग्री तैयार नहीं हो जाती थी, वे जल ग्रहण नहीं करते थे । साधना फलीभूत हुई । उपनिषद, पुराण, दर्शन, गायत्री महाविज्ञान सदृश प्रकाशन सर्वसुलभ हुआ । अखण्ड ज्योति संस्थान के कण-कण में परम पूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीया माताजी की संव्याप्त चेतना आज भी श्रद्धालुजन अनुभव करते है । युगान्तकारी समग्र चिंतन का वाङ्मय देखें, तो हर बात अक्षरशः सत्य दिखलाई पड़ेगी ।